9. “ਅਨਹਦ ਸੁਣਿ ਮਾਨਿਆ ਸਬਦੁ ਵੀਚਾਰੀ”

शब्द धुनि का ज्ञाननाद और अनहद नाद

अनहद नाद (निरन्तर बजते रहने वाली ध्वनि) का विचार आज कई धर्मों में पाया जाता है। श्री गुरु ग्रंथ साहिब नाद (शब्द, राग, धुनि) की बात करता है, परन्तु साथ ही इसे शब्द अनहद (शब्द-अनहद, मृदंग-अनहद, अनहद-बाणी, अनहद-धुनि और अनहद-किंगूरी) के साथ जोड़ते हैं। अनहद नाद एक ऐसी ’अन्तिम ध्वनि’ है, जो स्थान और समय के परे जाती है, यह एक ऐसी ध्वनि है, जिसका कोई आरंभ या अंत नहीं है,

“तेरे नाम की ध्वनि इतनी बारीक है कि यह अनसुनी रह जाती है, यह एक शाश्वत गूंज है। तेरे पास हजारों आँखें, आकार, पैर, नाक हैं … पर तेरे पास एक भी नहीं है … मैं तुझ पर मुग्ध हूं!”[i]

गुरु ग्रंथ, पृष्ठ. 13

क्योंकि, ये दोनों एक-दूसरे के साथ घनिष्ठ रूप से जुड़े हुए हैं, इसलिए यदि कोई नाद अर्थात् ध्वनि को जानता है, तो उस व्यक्ति को आदि (आरम्भिक सृजन शक्ति) को भी जानना चाहिए। वह जानता है कि आदि परमेश्वर है। इसलिए, नाद या ध्वनि की पहचान करने के लिए एक सिख को निमंत्रण दिया जाता है, “वह द्वार कहां है और वह घर कौन सा है, जिसमें तू बैठता है और सभी का ध्यान रखता है? ध्वनि की आवाज़ वहाँ कंपन पैदा करती है, और असंख्य संगीतकार वहाँ सभी प्रकार के वाद्ययंत्र बजाते हैं” (गुरु ग्रंथ, पृष्ठ 6)।[ii]  उसे एक गीत (जाप) गाने की सलाह दी जाती है, जो उसे उसके साथ एक सुर में ले आएगा, जो उसे आलौकिक ध्वनि (अनहद नाद) में लीन कर देगा,

“वह सृष्टि के रचयिता का गीत गाता है, वह प्रभु की धुन गाता है। वह प्रभु की भूमि में वास करता है। वह प्रभु का मार्ग दिखाता है, और प्रभु के साथ एक सुर में रहता है”[iii]

गुरु ग्रंथ, पृष्ठ 885

इस प्रकार, सरल शब्दों में ऐसे कहा जा सकता है कि पारब्रह्म (सृष्टिकर्ता परमेश्वर) की आवाज़ और शब्द अनहद ही वह ध्वनि है, जो मनुष्य के मन में वास कर रही है, इसलिए इसे आंतरिक आवाज़ भी कहा जाता है। कभी-कभार इसे चेतना या विवेक या अन्त∶करण भी कहा जाता है। यद्यपि, नाद के साथ घनिष्ठ संबंध होने के कारण, अनहद का अर्थ समय-सीमा से परे या असीम या पदार्थहीन निराकार की ध्वनि से है। नतीजतन, अनहद-धुनि का अर्थ अनन्त या शाश्वत् ध्वनि से और अनहद-शब्द का अर्थ अखंड या शुद्ध या शाश्वत शब्द से और इसी जैसे अन्य शब्दों से, अनहद-राग का अर्थ अखंड धुन या लय से होगा, जो इस शरीर से इसलिए आती है, ताकि वह अपने प्रिय के लिए महिमा और स्तुति ला सके, नाम जपने से, मुझे सभी तरह के संगीत वाद्ययंत्र एक स्वर में सुनाई देने लगते हैं” (गुरु ग्रंथ, पृष्ठ. 1144)।[iv]

अनहद नाद तभी प्रकट होता है, जब सत्य का एक खोजी अर्थात् भक्त या साधक सतगुरु से मुलाकात करता है, गुरुमुख से मित्रता करें और सच्चे गुरु पर अपना विवेक केंद्रित करें। जन्म और मृत्यु की मूल कट जाएगा, और तब तुझे शांति मिलेगी, हे मेरे मित्र!” (गुरु ग्रंथ, पृष्ठ 1421)।[v] सतगुरु को शब्द भी कहा जाता है, शब्द गुरु है, जिस पर मैं अपने विवेक को प्यार से केंद्रित करता हूं; मैं उसका चेला हूं,”  (गुरु ग्रंथ, पृष्ठ. 943)।[vi]  इसलिए, यह शब्द है, जो एक भक्त को अनहद नाद (अखंड धुन या अविरल लय) को सुनने में सक्षम बनाता है। अपने निहित गुणों के कारण, गुरु नानक देव जी ने शब्द अनहद को परमेश्वर के साथ जोड़ा है, जो कि सृष्टिकर्ता, आदि, पवित्र, बिना आरम्भ-के और शाश्वतकालीन है, वह जो आदि है, शुद्ध ज्योति, आरम्भ के बिना, और जिसका कोई अंत नहीं है, सभी युगों में एक सा रहता है और एक ही है” (गुरु ग्रंथ, पृष्ठ 7)।[vii]

जब एक भक्त इस ध्वनि या धुन को सुनता है, अर्थात् सतगुरु की निर्बाध गति से आने वाली आवाज़ को, तो उसका मन इसे पहचान लेता है कि, वह संगीत की ध्वनि की तरगों की अखंड धुन को सुन रहा है, उसका मन शब्द पर केंद्रित होता है, और वह इसे स्वीकार करता है” (गुरु ग्रंथ, पृष्ठ. 415)।[viii]  ठीक उसी क्षण एक भक्त के मन में दिन-रात चलते रहने वाले अविरल-राग की धुन बजने लगती है, वहाँ, शब्द की निर्बाध धुन दिन-रात कम्पन पैदा करती है। गुरु की शिक्षाओं के द्वारा शब्द को सुना जाता है” (गुरु ग्रंथ, पृष्ठ 124)।[ix]  उस में अनहद नाद बजने लगता है। इस अवस्था को समाधि या परम अर्थात् सर्वोच्च आनंद के रूप में वर्णित किया जाता है, या उस अवस्था के रूप में जहां अनन्त आनंद प्राप्त होता है, सबसे गहन समाधि, और नाद के अटूट राग की धुन वहां पर होती है। इसके आश्चर्य और अचम्भे का वर्णन नहीं किया जा सकता है” (गुरु ग्रंथ, पृष्ठ. 293)।[x]  इस समय एक गुरुमुख ने परमेश्वर से अपनी दयनीय अवस्था में, अपने स्थान पर मुलाकात की है, गुरमुख अपने मन के मंदिर की गहराई में जाता है और परमेश्वर से मिलता है; शब्द की अटूट धुन वहाँ कम्पन पैदा करती है” (गुरु ग्रंथ, पृष्ठ 1310)।[xi]  इस पड़ाव पर एक भक्त स्वर्ग का सदस्य बन जाता है, जो ब्रह्मांड से परे है, या दूसरे शब्दों में सच खंड, अलख और अगम देश है।

इसलिए, संक्षेप में इसे ऐसे कहा जा सकता है, नाद और अनहद नाद एक ही तार के दो विरोधी सिरे हैं। एक भक्त को नाद की पहचान करनी होती है, ताकि अनहद नाद उसमें शाश्वतकालीन राग को पैदा कर सके। अनहद नाद तभी प्रकट होता है, जब सत्य का साधक अर्थात् एक भक्त सतगुरु से मिलता है। सतगुरु को शब्द के रूप में भी जाना जाता है, जो एक भक्त को उसकी दयनीय या पीड़ादायी अवस्था में भी अनहद नाद को सुनने के लिए सक्षम बनाता है। जब एक भक्त उसकी आवाज अर्थात् अनहद नाद को सुनता है, तो सतगुरु द्वारा उसे सक्षम या योग्य किए गए इस गुण के कारण, वह तुरंत सतगुरु की आवाज, अर्थात अखंड ध्वनि या अविरल लय को पहचान लेता है। वह परम आनंद को प्राप्त करता है, क्योंकि वह अब अपने सतगुरु के साथ एक हो गया है।

यद्यपि, उपरोक्त व्याख्या से यह स्पष्ट है कि, यदि एक भक्त इस आंतरिक आवाज अर्थात अविरल धुन या अनहद नाद को सुनना चाहता है, तो उसे सतगुरु की खोज करनी पड़ती है। इसके बिना अनहद नाद की यह घटना वास्तविकता नहीं बनेगी। केवल सतगुरु के पास ही सच खंड की इस धुन की आग को भड़काने के लिए एक चिंगारी डालने की शक्ति है, क्योंकि वह स्वयं परमेश्वर अर्थात् शब्द है। इस प्रकार, विचार करने के लिए एक भक्त के मन में कई प्रश्न उठ खड़े होते हैं, जैसे कि यह सतगुरु कहाँ है? मैं उसे कहां खोजूं? अनहद नाद का अनुभव कैसे प्राप्त करें? शब्द धुनि का आनंद लेने के लिए क्या किया जा सकता है? रास (प्रेम) क्या है और रसिया (प्रिय) के साथ कैसे मेल-मिलाप स्थापित किया जा सकता है? इस दुविधा को कैसे मिटाया जा सकता है? इन प्रश्नों के उत्तर और अधिक स्पष्ट व्याख्या के साथ ग्रंथ बाइबल में दिए गए हैं।

ग्रंथ बाइबल कहता है कि सतगुरु यीशु मसीह शब्द है और यह वही है, जिसने शून्य अर्थात् “कुछ भी नहीं में से“ सब कुछ को बनाया है।

“आदि में शब्द था, और शब्द परमेश्‍वर के साथ था, और शब्द परमेश्‍वर था। यही आदि में परमेश्‍वर के साथ था। सब कुछ उसी के द्वारा उत्पन्न हुआ, और जो कुछ उत्पन्न हुआ है, उसमें से कोई भी वस्तु उसके बिना उत्पन्न नहीं हुई” ()

यूहन्ना 1:1-3

। जब वह मानव जाति को रचने की प्रक्रिया में था, तो उसने मनुष्य के मन में सदैव के लिए अनादि-अनंत काल नामक तत्व को रख दिया,

“उसने सब कुछ ऐसा बनाया कि अपने अपने समय पर वे सुन्दर होते हैं; फिर उसने मनुष्यों के मन में अनादि–अनन्त काल का ज्ञान उत्पन्न किया है, तौभी जो काम परमेश्‍वर ने किया है, वह आदि से अन्त तक मनुष्य समझ नहीं सकता” 

सभोपदेशक 3:11

। इस तरह शब्द या धुनि (शाश्वत शब्द, आवाज) ने अपने राग (अनहद नाद) को एक व्यक्ति के कमल जैसे निर्मल मन में रख दिया।

परन्तु मनुष्य का मन परमेश्वर की पूर्णता का अनुभव नहीं कर सकता है, न ही यह कि परमेश्वर ने अतीत में क्या किया है और परमेश्वर भविष्य में क्या करने जा रहा है, और न ही यह कि वह वास्तव में अब क्या करेगा। इसका मूल कारण यह है कि यह तार जिसे नाद और आदि या अनहद नाद कह कर पुकारा जाता है, हऊमै या दूसरे शब्द पाप के कारण टूट गई, नि:सन्देह पृथ्वी पर कोई ऐसा धर्मी मनुष्य नहीं जो भलाई ही करे और जिस से पाप न हुआ हो” (सभोपदेशक) 7:20)। कमल के फूल की तरह महकने वाला यह मन एक जहरीले जानलेवा पौधे में परिवर्तित हो गया है। “मन तो सब वस्तुओं से अधिक धोखा देने वाला होता है, उस में असाध्य रोग लगा है; उसका भेद कौन समझ सकता है?” (यिर्मयाह 17: 9)। सतगुरु यीशु मसीह ने इस तरह से मन की स्थिति को और अधिक इन शब्दों में स्पष्ट किया है, क्योंकि भीतर से, अर्थात् मनुष्य के मन से, बुरे बुरे विचार, व्यभिचार, चोरी, हत्या, परस्त्रीगमन, लोभ, दुष्‍टता, छल, लुचपन, कुदृष्‍टि, निन्दा, अभिमान, और मूर्खता निकलती हैं (मरकुस 7:21-22)। इसके परिणामस्वरूप, मानव जाति अपने सृष्टिकर्ता परमेश्वर से दूर हो गई और अपने पापों में खो गई।

तथापि, सतगुरु यीशु मसीह का इस संसार में आने का उद्देश्य खोए हुए भक्तों की खोज करना था, “क्योंकि सतगुरु यीशु मसीह खोए हुओं को ढूढ़ने और उनका उद्धार करने के लिए आया है” (लूका 19:10), जहरीले पौधे की जहर को साफ करने के लिए आया है, “तुम तो उस वचन के कारण जो मैं ने तुम से कहा है, शुद्ध हो” (यूहन्ना 15:3)। सतगुरु यीशु मसीह को पता था कि मनुष्य के मन में वास करता हुआ नाद अर्थात् ध्वनि या अनादि-अनन्त काल का तत्व उसकी आवाज को पहचानेगा और उसके साथ एक लय या सुर में आ जाएगा, इसलिए उसने एक बार कुछ ऐसे कहा, “मेरी भेड़ें मेरा शब्द सुनती हैं; मैं उन्हें जानता हूँ, और वे मेरे पीछे पीछे चलती हैं; और मैं उन्हें अनन्त जीवन देता हूँ” (यूहन्ना 10∶27-28)। परन्तु जैसा कि ऊपर देखा गया है, मनुष्य का मन इतना अधिक भ्रष्ट या उदासीन है कि वह अपने प्रिय (रसिए) की आवाज़ भी नहीं सुनना चाहता है, जिस कारण सतगुरु यीशु मसीह ने एक बार पुकार कर कुछ ऐसा कहा था,

“मैं इस समय के लोगों की उपमा किससे दूँ?. . . हमने तुम्हारे लिये बाँसली बजाई, और तुम न नाचे; हम ने विलाप किया, और तुम ने छाती नहीं पीटी’”

मत्ती 11:16-17

क्योंकि, अनहद नाद की समझ एक भक्त को तब तक नहीं आ सकती जब तक कि वह सतगुरु से मुलाकात नहीं कर लेता। इसलिए, ग्रंथ बाइबल कहता है कि, सतगुरु यीशु मसीह ने एक भक्त को उससे मुलाकात करने के लिए आमंत्रित किया है, “देख, मैं द्वार पर खड़ा हुआ खटखटाता हूँ; यदि कोई मेरा शब्द सुनकर द्वार खोलेगा, तो मैं उसके पास भीतर आकर उसके साथ भोजन करूँगा और वह मेरे साथ” (प्रकाशितवाक्य 3:20)। सतगुरु यीशु मसीह उन लोगों को कहते हैं, जो इस निमंत्रण को हर्ष के साथ स्वीकार करने के लिए तैयार हैं या जो अपनी नाद अर्थात् धुन को आदि अर्थात् परमेश्वर के साथ जोड़ना चाहते हैं,

“मैं तुम से सच सच कहता हूँ, वह समय आता है, और अब है, जिसमें मृतक (आत्मिक रीति से मुर्दे) परमेश्‍वर के पुत्र [सतगुरु यीशु मसीह] का शब्द सुनेंगे, और जो सुनेंगे वे जीएँगे”

यूहन्ना 5:25

यही वह स्थान है, जहाँ शोक नृत्य और गीत में बदल जाता है, जहाँ एक आत्मा अपने परमात्मा (सर्वशक्तिमान ईश्वर) के साथ जुड़ जाती है, जहाँ एक भक्त या साधक जीवन-मुक्ता बन जाता है, जहाँ एक जहरीले पौधे जैसा मन एक कमल के जैसे मन में परिवर्तित हो है, जहां शोक का पहिरावा विवाह के पहिरावे में परिवर्तित हो जाता है। क्योंकि, सतगुरु यीशु मसीह ने एक साधक के मन की अवस्था को बदल दिया है। इसलिए, सतगुरु यीशु मसीह से मिलने पर, एक भक्त हर्ष के मारे चिल्ला उठाता है और इस तरह गाने लगता है, तू ने मेरे लिये विलाप को नृत्य में बदल डाला; तू ने मेरा टाट उतरवाकर मेरी कमर में आनन्द का पटुका बाँधा है” (भजन संहिता 30:11)। वह अब भूले हुए गीत को गाने में सक्षम हो गया है, और अब वह जानता है कि इसी एकमात्र उद्देश्य के लिए उसे रचा गया था, उदयाचल से लेकर अस्ताचल तक, परमेश्वर का नाम स्तुति के योग्य है” (भजन संहिता 113∶3)। इस लिए श्री गुरु ग्रंथ साहिब कहता है कि: “सर्वदा पवित्र सच्चे परमेश्वर की स्तुति करो, और मन की गहराई में नाद की पवित्र ध्वनि-तंरगें फैलें”  (गुरु ग्रंथ, पृष्ठ. 121)।[xii]  क्योंकि, यह अनहद नाद की जागरूकता है, जो एक व्यक्ति को परे ले जाती है, शब्द की कम्पन के बारे में जागरूकता के कारण गहरी जागृत आ जाती है” (गुरु ग्रंथ, पृष्ठ 903) [xiii] और यह जागरूकता केवल सतगुरु यीशु मसीह के माध्यम से आती है।


[i] अनहता सबद वाजंत भेरी ॥१॥ रहाउ ॥ सहस तव नैन नन नैन हहि तोहि कउ सहस मूरति नना एक तोही ॥

[ii] सो दरु केहा सो घरु केहा जितु बहि सरब समाले ॥ वाजे नाद अनेक असंखा केते वावणहारे ॥

[iii] ओअंकारि एक धुनि एकै एकै रागु अलापै ॥ एका देसी एकु दिखावै एको रहिआ बिआपै ॥

[iv] नामु लैत अनहद पूरे नाद ॥३॥               

[v] गुरमुख सउ करि दोसती सतिगुर सउ लाइ चितु ॥ जमण मरण का मूलु कटीऐ तां सुखु होवी मित ॥६६॥

[vi] सबदु गुरू सुरति धुनि चेला ॥ 

[vii] आदि अनीलु अनादि अनाहति जुगु जुगु एको वेसु ॥२९॥

[viii] अनहद सुणि मानिआ सबदु वीचारी ॥

[ix] ओथै अनहद सबद वजहि दिनु राती गुरमती सबदु सुणावणिआ ॥६॥

[x] सुंन समाधि अनहत तह नाद ॥ कहनु न जाई अचरज बिसमाद ॥

[xi] गुरमुखि जाइ मिलै निज महली अनहद सबदु बजावैगो ॥५॥

[xii] निरमल गुण गावै नित साचे के निरमल नादु वजावणिआ ॥२॥

[xiii]सुरति सबदु धुनि अंतरि जागी ॥

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