जीवन मुक्ता बनने के लिए “नाम” की अवधारणा एक अन्य महत्वपूर्ण शब्द है, जो सिख धर्म में मुक्ति या मोक्ष की प्राप्ति के लिए पाया जाता है। शब्द “नाम” अकाल पुरख (ईश्वर) के संपूर्ण स्वभाव का सार है।[i] इस तरह, सिख धर्म का नाम पर ध्यान (चिन्तन) देने पर आधारित एक धर्म है। सिखों के लिए अनिवार्य रूप से निर्धारित दैनिक और प्रार्थना (अरदास) में, एक सिख को ऐसी प्रार्थना करने के लिए कहा गया है कि गुरु नानक देव जी द्वारा प्रचारित नाम का धर्म सभी मनुष्यों के लिए समृद्धि और शांति को ले आए, “नानक नाम चढ़दी कला, तेरे भाणे सरबत दा भला।“[ii] जिसका अर्थ है कि, “नानक ‘नाम’ (ईश्वर के नाम) की मांग करता है, जिसके साथ कल्याण, खुशी और सकारात्मक भावना आती है और तेरे आशीर्वाद के साथ, हे ईश्वर पूरे संसार में सभी को समृद्धि मिले और सभी शांति में रहें”)।[iii]
इस वाक्य नाम-सिमरन का शाब्दिक अर्थ, “ईश्वर को स्मरण” करना या शायद “निरन्तर ईश्वर को ध्यान में रखने” से है।[iv] यह शब्द नाम-सिमरन श्री गुरु ग्रंथ साहिब में विभिन्न शब्दों में व्यक्त किया गया है।[v] सिख रहित मर्यादा अर्थात् पंथक जीवन जीने के विधान के अनुसार, यह जीवन के तरीके को संदर्भित करता है, जिसमें सिखों की पवित्र पुस्तक “श्री गुरु ग्रंथ साहिब” में दी गई आध्यात्मिक और नैतिक प्रथाओं दोनों के मार्गदर्शन को शामिल किया गया है।
गुरु ग्रंथ इसमें कुछ और बातों को भी जोड़ता है: “संसार रोगी है, और इसकी दवाई नाम है; सच्चे प्रभु के बिना, इसकी गंदगी जमी रहती है। गुरु का शब्द पवित्र और शुद्ध है; यह प्रकाश की एक स्थाई लहर को चमकाता है। तीर्थ के ऐसे सच्चे मंदिर में निरन्तर स्नान करना चाहिए” (गुरु ग्रंथ, पृष्ठ 687)।[vi] इस से, यह स्पष्ट हो जाता है कि यह संसार रोगी है और इसका इलाज केवल नाम में पाया जा सकता है। इस प्रकार सिख धर्म अपने दर्शन में नाम को सर्वोच्च मानता है।
आत्म-बोध की प्राप्त के लिए और सति नाम कर्ता-पुरख परमेश्वर (सृष्टिकर्ता परमेश्वर का सच्चा नाम) की सदा बनी रहने वाली उपस्थिति को प्राप्त करने के लिए, एक सिख को गुरु के उपदेशों और गुरु के प्रति अपने हऊमै (अहंकार या घमण्ड) को सर्मपित करने का आग्रह किया जाता है। गुरु की शिक्षाएँ एक शिष्य को नाम सिमरन में संलग्न होने में मदद देती हैं और उसे आध्यात्मिक रूप से आगे बढ़ने और आत्म-बोध के ज्ञान की प्राप्त का अवसर भी प्रदान करती हैं। श्री गुरु ग्रंथ साहिब लगातार इस रोग के कारणों के बारे में बोलता है और आग्रह करता है कि एक साधक को गुरु की ओर दौड़ना चाहिए, “यह संसार संसारिक मोह में उलझा हुआ है और इसीलिए मृत्यु और पुनर्जन्म के तीव्र दुःख से दुखित है; सच्चे गुरु की शरण लेने के लिए दौड़ें। अपने मन में ईश्वरीय नाम का ध्यान करें और इस तरह मोक्ष की प्राप्त करें” (गुरु ग्रंथ, पृष्ठ 505)।[vii]
गुरु अर्जुन देव के अनुसार, “ईश्वर का नाम मोक्ष (मुक्ति) और इसे प्राप्त करने का साधन (जुगति) है, और ईश्वर का नाम पूर्ण प्राप्ति (संतुष्टि) और परम आनंद (भक्ति) है” (गुरु ग्रंथ, पृष्ठ 264 -265) है।[viii] इस प्रकार, ईश्वर के नाम का जाप करने वाले व्यक्ति को किसी तरह का कोई कष्ट नहीं सहना पड़ता है। ईश्वर के नाम (नाम सिमरन) को दोहराते रहने में एक साधक की इच्छा यही रहती है कि वह अपने प्रभु की कृपा और प्रेम को प्राप्त कर सके। सच्चाई तो यह है कि ब्रह्मांड नाम ही के कारण थमा हुआ और टिका हुआ है: “नाम पृथ्वी और सौर प्रणाली को सहारा देता है” (गुरु ग्रंथ, पृष्ठ 284)।[ix]
गुरु नानक जी आगे कहते हैं कि, उनका शाश्वत नाम “सत्” है, जिसका अर्थ सत्य है। वह सत्य है और इसलिए उसका नाम भी सत्य है, “सत्य ही स्वामी है, सत्य ही उसका नाम है – इसे अपार प्रेम के साथ बोलें” (गुरु ग्रंथ, पृष्ठ 2)।[x] यह शब्द, सतनाम, ईश्वर के गुणों में से एक है, जिसे मूल-मंतर अर्थात् सिख धर्म के विश्वास के सार में भी बोला जाता है। इसलिए, ईश्वर तक पहुंचने का एक माध्यम एक सीढ़ी के रूप में नाम है।
इस प्रकार, संक्षेप में, सिख धर्म नाम का मार्ग है (जाप का मार्ग), जो एक शिष्य को ईश्वर की प्राप्ति की ओर ले जाता है। लेकिन एक साधक बिना दिव्य अनुग्रह या कृपा के नाम को नहीं समझ सकता है, यह तो केवल गुरु की ओर से ही आता है और एक बार फिर से यह ईश्वर की कृपा या अकाल पुरख की कृपा है, जिसके द्वारा यह एक साधक के लिए गुरु से मिलने का साधन बन जाता है। नाम-सिमरन का व्यक्तिगत् रूप से और साध संगत के साथ बैठ कर अभ्यास करना एक साधक को जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्त करता है और उसे अनन्तकालीन परम आनंद का उपहार प्रदान होता है।
यदि मानव जाति को समृद्ध होना है और शांति पानी हैं, जो वर्तमान समय में संसार के भ्रष्टाचार या रोग के कारण दु:खी है, तो उपरोक्त सुझावों के अनुसार इलाज केवल नाम में ही पाया जा सकता है। इसके लिए, एक साधक को अपने आध्यात्मिक विकास के लिए और मोक्ष के ज्ञान की प्राप्ति के लिए सच्चे गुरु के ओर दौड़ना पड़ता है और इसके बाद ही उसे मुक्ति की प्राप्ति होती है। सच्चा गुरु ही इस ब्रह्मांड को बनाए रखता है और उसे थामे रखता है। फलस्वरुप, वह इस संसार को भी छुटकारा दिला सकता है। परन्तु तिस पर भी, यह हमें कुछ महत्वपूर्ण सवालों के जवाब को खोजने के लिए मजबूर करता है: कैसे और क्यों ईश्वर की रचना भ्रष्ट या रोगग्रस्त या इस बीमारी से पीड़ित हो गई? छुटकारे के लिए नाम की खोज कहां की जाए? वह कौन है, जिसने सृष्टि का निर्माण किया और उसे थामे रखता है?
इन महत्वपूर्ण सवालों के जवाब पाने के लिए, हमें एक बार फिर ग्रंथ बाइबल पर वापस जाना होगा। बाइबल स्पष्ट रूप से बताती है कि ब्रह्मांड और मानव जाति के निर्माण के बाद, ईश्वर उन से प्रसन्न था। लेकिन, कम समय में ही, मनुष्य ने ईश्वर के विरूद्ध विद्रोह कर दिया, जैसा कि गुरु ग्रंथ में कहा गया है, “अपनी पुस्तक खोलने पर, ईश्वर आपको लेखा देने के लिए बुलाएगा। जिन विद्रोहियों का लेखा सही नहीं है, उन्हें बाहर कर दिया जाएगा” (गुरु ग्रंथ, पृष्ठ 953)।[xi] इसलिए, जिन लोगों को ईश्वर ने रचा था, उन्होंने न केवल अपने संबंध, अपने आनंद, अपनी खुशी, अपनी दोस्ती, अपनी शांति और उसके साथ अपने संबंध खो दिया है, परन्तु सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि वे ईश्वर की महिमा से ही वंचित हो गए हैं, क्योंकि “सभी ने पाप किया है और ईश्वर की महिमा से रहित हैं” (रोमियों 3:23)।
इसके अलावा, इस विद्रोह (हऊमैं अर्थात् अहंकार) का प्रभाव इतना अधिक था कि इसने पूरे ब्रह्मांड को इस हद तक दूषित कर दिया कि वह शापित या रोगी हो गया, “इसलिये भूमि तेरे [मनुष्य के] कारण शापित [रोगी] है। तू उसकी उपज जीवन भर दु:ख के साथ खाया करेगा; और वह तेरे लिये काँटे और ऊँटकटारे उगाएगी, और तू खेत की उपज खाएगा” (उत्पत्ति 3:17-18)। ग्रंथ बाइबल कहता है कि समय के साथ, यह रोग बढ़ता चला गया: “उस समय पृथ्वी परमेश्वर की दृष्टि में बिगड़ गई थी, और उपद्रव से भर गई थी। और परमेश्वर ने पृथ्वी पर जो दृष्टि की तो क्या देखा कि वह बिगड़ी हुई है; क्योंकि सब प्राणियों ने पृथ्वी पर अपना अपना चाल-चलन बिगाड़ लिया था” (उत्पत्ति 6:11-12)। नतीजतन, यहां तक कि यह सृष्टि भी छुटकारे के लिए तरस रही है,
“क्योंकि सृष्टि बड़ी आशाभरी दृष्टि से . . . बाट जोह रही है। क्योंकि सृष्टि अपनी इच्छा से नहीं पर अधीन करने वाले की ओर से, व्यर्थता के अधीन इस आशा से की गई कि सृष्टि भी आप ही विनाश के दासत्व से छुटकारा पाकर . . . स्वतंत्रता प्राप्त करेगी। क्योंकि हम जानते हैं कि सारी सृष्टि अब तक मिलकर कराहती और पीड़ाओं में पड़ी तड़पती है”।
रोमियों 8:19-22
लेकिन, अच्छी खबर यह है कि हमें एक सच्चा नाम (सतनाम) दिया गया है, जो न केवल इस रोग को ठीक करेगा, बल्कि एक साधक को भी छुटकारा दे सकता है, जो वर्तमान में इस सृष्टि की गंदगी में फंसा हुआ है। और यह सच्चा नाम यानी सतनाम ईश्वर और उसके साधक के बीच, दूल्हे और दुल्हन के बीच, पति और पत्नी के बीच, प्रेमी और प्रेमिका के बीच सिद्ध प्रेम को लाएगा। यह सच्चा नाम ऊपर से अर्थात् धुर दरगाहों ईश्वर (अकाल-पुरख) द्वारा दिया गया है, जो पाप के प्रभाव [अहंकार], या भ्रष्टाचार, या रोग को नाश कर देता है और ईश्वर के साधक को मोक्ष प्रदान करते हुए परमेश्वर के ज्ञान की प्राप्ति के लिए या उसे परमेश्वर साकार करने की अवस्था में ले जाने के लिए तैयार करता है।
यह मानव जाति को दिया जाने वाला एकमात्र नाम है, जिसके द्वारा व्यक्ति अनन्त जीवन (अमृत जल या गुरु प्रसाद) की प्राप्ति कर सकता है, इस नाम से पहले और इसके बाद कोई अन्य नाम नहीं दिया गया है, और यह नाम सतगुरु यीशु मसीह है। जिस के विषय में ग्रंथ बाइबल यह कहता है:
“इस कारण परमेश्वर ने उसको अति महान् भी किया, और उसको वह नाम दिया जो सब नामों में श्रेष्ठ है, कि जो स्वर्ग में और पृथ्वी पर और पृथ्वी के नीचे हैं, वे सब यीशु के नाम पर घुटना टेकें; और परमेश्वर पिता की महिमा के लिये हर एक जीभ अंगीकर कर ले कि सतगुरु यीशु मसीह ही प्रभु है!”।
फिलिप्पियों 2: 9-11
ग्रंथ बाइबल यह कहता है कि, “किसी दूसरे के द्वारा उद्धार नहीं; क्योंकि स्वर्ग के नीचे मनुष्यों में और कोई दूसरा नाम नहीं दिया गया, जिसके द्वारा हम उद्धार पा सकें” (प्रेरितों के काम 4:12), केवल सतगुरु यीशु मसीह के नाम को छोड़कर। ग्रंथ बाइबल इसे और भी अधिक स्पष्ट करता है, जब वह यह कहता है कि यह ‘नाम’ ही है, जिसमें सब कुछ टिका हुआ है, यानी सब कुछ उसी में स्थिर रहती हैं।
“वही (सच्चा नाम – सत नाम) तो अदृश्य परमेश्वर का प्रतिरूप. . . है, क्योंकि उसी (सच्चा नाम – सत नाम) में सारी वस्तुओं की सृष्टि हुई, स्वर्ग की हों अथवा पृथ्वी की, देखी या अनदेखी, क्या सिंहासन, क्या प्रभुताएँ, क्या प्रधानताएँ, क्या अधिकार, सारी वस्तुएँ उसी के द्वारा और उसी के लिये सृजी गई हैं। वही (सच्चा नाम – सत नाम) सब वस्तुओं में प्रथम है, और सब वस्तुएँ उसी में स्थिर रहती हैं”।
कुलुस्सियों 1:15-17
इसलिए, सतगुरु यीशु मसीह ही एकमात्र ‘नाम’ है, जिसे अकाल पुरख ईश्वर द्वारा रोगी मानव जाति को दिया गया है। केवल उसी के माध्यम से परमेश्वर की सिफ़त अर्थात् प्रशांसा की जा सकती है, केवल उसी के माध्यम से परमेश्वर पर ध्यान किया जा सकता है, केवल उसी में ही एक साधक को छुटकारा मिल सकता है, और केवल उसके माध्यम से ही एक साधक ईश्वर अर्थात् अपने प्रेमी तक पहुँच सकता है, ऐसा इसलिए है क्योंकि वही केवल ईश्वर द्वारा मानव जाति को दिया जाने वाला सबसे दयालु और कृपालु नाम है। इसलिए, यह “नाम” ईश्वर के स्वभाव का पूर्ण सार और तत्व है। यह नाम ’मोक्ष (मुक्ति) की कुंजी है, यह नाम प्राप्ति (जुगति) का साधन है, यही ‘नाम’ है, जो त्रृष्णा (तृप्ति) को बुझाता है, और यही ‘नाम’ परम आनंद (भूगती) भी है। इसके सिवा किसी से इस नाम को नहीं प्राप्त किया जा सकता। इसीलिए गुरु ग्रंथ का श्लोक संसार के इस भव-सागर को पार करने के लिए यहां लिखना उपयुक्त रहेगा:
अपने इन हाथों से मैं ईश्वर का काम करता हूं;
अपनी इस जीभ से मैं ईश्वर की स्तुति का गान करता हूं।
अपने इन पैरों से, मैं अपने ईश्वर और गुरु के रास्ते पर चलता हूं। ((1))
यह एक अच्छा समय है, जब मैं उसे चिन्तन में याद करता हूं।
ईश्वर के नाम का ध्यान करके, मैं इस डरावने संसार-रूपी महासागर को पार कर जाता हूं। (1) (रहाऊ) (गुरु ग्रंथ, प
[i] ……… “सिख धर्म का मूल सिद्धांत,” (लुधियाना: सिख मिशनरी कॉलेज. पृ. 24)।
[ii] ਨਾਨਕ ਨਾਮ ਚੜ੍ਹਦੀ ਕਲਾ ॥ ਤੇਰੇ ਭਾਣੇ ਸਰਬੱਤ ਦਾ ਭਲਾ ॥
[iii] जोसफ़ टी, ओकोनेल और अन्य; “बीसवीं शताब्दी में सिख इतिहास और धर्म,” (नई दिल्ली: मनोहर प्रका, 1990), पृ. 44-51.
[iv] ……… “सिख धर्म का मूल सिद्धांत,” (लुधियाना: सिख मिशनरी कॉलेज. पृ. 24)।
[v] नाम को दोहराना (ਨਾਮ ਜਪਣਾ), नाम का बिना रूके बोलना (ਸਿਮਰਣ), चिन्तन (ਧਿਆਉਣਾ), बोलना (ਬੋਲਣਾ), थरथराना (ਰਵਣ) ਜਾਂ उच्चारण (ਉਚਰਨਾ) और ऐसे ही अन्य कई नाम।
[vi] संसारु रोगी नामु दारू मैलु लागै सच बिना ॥
गुर वाकु निरमलु सदा चानणु नित साचु तीरथु मजना ॥१॥
[vii] इहु जगु मोह हेत बिआपितं दुखु अधिक जनम मरणं ॥ भजु सरणि सतिगुर ऊबरहि हरि नामु रिद रमणं ॥५॥
इसे भी देखें – सिद्ध गोसटि ३२, गुरु ग्रंथ, पृष्ठ. 941, (“हे नानक, यह वह है, जो … .. शाश्वत शांति है”)।
[viii] हरि का नामु जन कउ मुकति जुगति ॥ हरि कै नामि जन कउ त्रिपति भुगति ॥
हरि का नामु जन का रूप रंगु ॥ हरि नामु जपत कब परै न भंगु ॥
हरि का नामु जन की वडिआई ॥ हरि कै नामि जन सोभा पाई ॥
हरि का नामु जन कउ भोग जोग ॥ हरि नामु जपत कछु नाहि बिओगु ॥
जनु राता हरि नाम की सेवा ॥
[ix] नाम के धारे खंड ब्रहमंड ॥
[x] साचा साहिबु साचु नाइ भाखिआ भाउ अपारु
[xi] लेखा रबु मंगेसीआ बैठा कढि वही ॥
तलबा पउसनि आकीआ बाकी जिना रही ॥