कृपा के लिए उपयोग किए जाना वाला एक अरबी शब्द नदर एक ऊँचे व्यक्ति द्वारा एक कमजोर व्यक्ति के ऊपर दिखाई गई कृपादृष्टि को संदर्भित करता है, कृपा या अनुग्रह “जीवनमुक्ता” (एक मुक्ति पाया हुआ व्यक्ति) होने की प्रक्रिया का आरम्भ है। सिख धर्म में ईश्वर की कृपा को नदर, मेहर, कृपा और ईश्वरीय कार्य (परमेश्वर का काम) और इसी तरह के अन्य शब्दों द्वारा व्यक्त किया जाता है। ईश्वरीय अनुग्रह सिख धार्मिक परम्परा के लिए एक केन्द्रीय अवधारणा है, जो मनुष्य की प्रार्थना के प्रति उत्तरदायी एक भावातीत अस्तित्व में अपने विश्वास की पुष्टि करता है और जिससे यह क्षमा और दया की अपील करता है। ईश्वर मनुष्य पर अपनी कृपा को प्रकट करता है, परन्तु इसका यह अर्थ नहीं है कि मनुष्य को अच्छा नहीं होना चाहिए या उसे अच्छा होने के लिए अपने प्रयास नहीं करने चाहिए।
इसलिए, सिख धर्म के अनुसार मनुष्य को कृपा अर्थात् अनुग्रह प्राप्त करना होता है, परन्तु यह परमेश्वर पर निर्भर करता है कि वह इसे किसे दे। गुरु ग्रंथ कहता है कि, “वह हर किसी को देखता है, परन्तु केवल जिसे वह चाहता है, उसे ही देता है” (गुरु ग्रंथ, पन्ना. 25)।[i] इतना होने पर भी परमेश्वर की कल्पना सबसे अधिक दयालु और तरस खाने वाले के रूप में की जाती है। सिख धर्म में कृपा या अनुग्रह (गुरुप्रसाद) पर बहुत अधिक जोर दिया जाता है, जो सिख को नाम या प्रबोधन का एहसास कराने में सहायता करता है (गुरु ग्रंथ, पन्ना. 351)।[ii]
भक्ति के लिए एक व्यक्ति को स्वयं (जीवात्मा) को बढ़ावा देने के लिए नदर मूल और मौलिक कारक है। श्री गुरु अर्जुन देव जी कहते हैं कि, “जिस किसी को तू कृपा करता है, हे प्रभु, तू उसे भक्ति के मार्ग में चलने योग्य कर देता है” (गुरु ग्रंथ, पन्ना. 8H)।[iii] इस तरह से यह हमें स्पष्ट कर देता है कि परमेश्वर की कृपा से ही एक साधक निर्वाण अर्थात् मुक्ति के लक्ष्य तक पहुँचता है। गुरु ग्रंथ में इस बात कई स्थानों पर जोर देकर कहा गया है। उदाहरण के लिए, “ईश्वरीय कृपा के माध्यम से ईश्वर के साथ मेल होता है, इसके बारे में किसी को भी सन्देह नहीं होने चाहिए” (गुरु ग्रंथ, पन्ना. 936)।[iv]
क्यों परमेश्वर दया या कृपा को दिखाता है, यह रहस्य का विषय है। यद्यपि उसकी प्रभुता सम्पन्न इच्छा (रज़ा) और अनुग्रह (नदर) स्वतंत्र रूप से और खुले तौर पर दी जाती है, तौभी उन सभी पर नहीं, जो उसकी खोज करते हैं। आइए हम इस बात पर भी ध्यान दें कि एक व्यक्ति को कृपा से मिलने वाले सबसे अच्छे फल के विषय में भी गुरु ग्रंथ में बताया गया है। अर्थात्, “नानक कहते हैं, कि परमेश्वर ही सभी का पति हैं। जिस पर वह अपनी कृपा दृष्टि को डालता है, वह, उसकी सदा की-दुल्हन बन जाता है (गुरु ग्रंथ, पन्ना. 351)।[v] इस प्रकार, गुरु ग्रंथ के शब्दों में ही इस अवधारणा को संक्षेप में प्रस्तुत करने पर हम पाते हैं कि, “यह अनुग्रह है, जो मनुष्य के पास परम आनंद को ले आता है:” हे नानक, दयालु परमेश्वर, अपनी कृपा से, उन्हें ऊँचे पर उठाता और उनकी बढ़ाई करता है “(गुरु ग्रंथ, पन्ना. 8)।[vi]
हम इस विषय पर स्पष्ट हो कि यद्यपि सिख धर्म का अनुग्रह हिन्दू धर्म कर्म के दर्शन से निकटता से जुड़ा हुआ है, तौभी यह हिन्दू दर्शन से बहुत अधिक भिन्न है। हिन्दू दर्शन में कर्म नैतिक क्षेत्र में कारण और प्रभाव के नियम का प्रतिरूप है। इसलिए मनुष्य को ईश्वर की कृपा के लिए लालसा करने की कोई आवश्यकता ही नहीं होगी। परन्तु जपजी में गुरु नानक की शिक्षाओं के अनुसार, यह कहते हुए अनुग्रह के साथ कर्म के विपरीत है कि, “कर्म के कारण शरीर जन्म लेता है, परन्तु अनुग्रह के माध्यम से मोक्ष प्राप्त होता है (गुरु ग्रंथ, पन्ना. 2)।[vii] इसके अतिरिक्त, गुरु ग्रंथ कहते हैं कि, “यह परमेश्वर की कृपा के माध्यम से ही है कि एक भक्त गुरु की सेवा करता है। ऐसा होता है कि एक व्यक्ति का मन निंयत्रण में आ जाता है और वह शुद्ध हो जाता है (गुरु ग्रंथ, पन्ना. 558)।[viii] इस प्रकार, मूल धारणा यह है कि अनुग्रह अर्थात् कृपा या नदर एक व्यक्ति को परम आनंद से भर देता है।
इस प्रकार, यह हमें कम से कम चार निष्कर्षों तक पहुँचने में सहायता देता है – पहला यह कि कृपा अर्थात् मेहर या अनुग्रह उपलब्ध है, दूसरा यह कि अनुग्रह ईश्वर के विवेक का विषय है, तीसरा यह कि अनुग्रह एक व्यक्ति को मुक्ति प्राप्ति के लिए जागृत करता है और अन्त में चौथा यह कि अनुग्रह ईश्वर के साथ मिलन का माध्यम बन जाता है और अंततः एक व्यक्ति को अर्थात् दुल्हिन को उसके दुल्हे से मेल करा देता है। परिणामस्वरुप यह एक व्यक्ति को संस्कार चक्र अर्थात् जन्म-मरण के चक्र से छुटकारा दे देता है।
अब, उपरोक्त विचार को ध्यान में रखते हुए एक प्रश्न उठता है कि नदर या ईश्वर की कृपा कैसे प्राप्त की जाए? दिलचस्प बात यह है कि इसका उत्तर पवित्र ग्रन्थ बाइबल में उपयुक्त रीति से दिया गया है। बाइबल उन सभों को एक स्पष्ट आह्वान देती है, जो परमेश्वर की खोज करते हैं या जो संस्कार चक्र से छुटकारा चाहते हैं और जीवनमुक्ता बनना चाहते हैं। यह कहती है, “क्योंकि परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम किया कि उसने सतगुरू यीशु मसीह को दे दिया, ताकि जो कोई विश्वास करे वह नाश न हो परन्तु अनन्त जीवन पाए (बाइबल, यूहन्ना 3:16)। अब, यह अनुग्रह “सभी के” लिए उपलब्ध है, तथापि हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि यह फिर से परमेश्वर के विवेक पर निर्भर करता है कि वह इसे किसे दे या किसे नहीं।
परमेश्वर, जो दयालु हैं और तरस से भरा हुआ है, सभी को यह अनुग्रह प्राप्त करने के लिए बुलाता है, परन्तु उसी समय कुछ लोग उसके प्रस्ताव को स्वीकार नहीं करने का निर्णय किया है। यही कारण है कि यीशु मसीह ने कहा है कि,
“यदि मनुष्य सारे जगत को प्राप्त करे और अपने प्राण की हानि उठाए, तो उसे क्या लाभ होगा। मनुष्य अपने प्राण के बदले क्या देगा?”
बाइबल, मरकुस 8:36-37
। इस तरह से अनुग्रह उसके विवेक का विषय बन जाता है। इस प्रकार, यह गुरु ग्रंथ द्वारा निर्धारित मुक्ति को प्राप्त करने के लिए दूसरे मानदंडों को पूरा करता है।
जो कुछ कहा जा रहा है, उसे जोड़ने पर, हम पाते हैं कि बाइबल स्वयं में स्पष्ट है कि यह कृपा किसी अच्छे कर्म के द्वारा या भक्ति के द्वारा या परमेश्वर को प्रसन्न करने वाले किसी भी माध्यम से प्राप्त नहीं की जा सकती है। बाइबल कहती है कि, “हम तो सब के सब अशुद्ध मनुष्य के से हैं, और हमारे धर्म के काम सब के सब मैले चिथड़ों के समान हैं। हम सब के सब पत्ते के समान मुर्झा जाते हैं, और हमारे अधर्म के कामों ने हमें वायु के समान उड़ा दिया है” (बाइबल, यशायह 64:6)। इसके अतिरिक्त, बाइबल में कर्म के सम्बन्ध में एक उल्लेखनीय वचन पाया जाता है,
“क्योंकि विश्वास के द्वारा अनुग्रह ही से तुम्हारा उद्धार हुआ है; और यह तुम्हारी ओर से नहीं, वरन् परमेश्वर का दान है, और न कर्मों के कारण, ऐसा न हो कि कोई घमण्ड करे”
बाइबल, इफिसियों 2:8-9
। यह कितने बड़े आनन्द की बात है, कि किसी को अपने कामों पर निर्भर रहने की आवश्यकता नहीं है।
इसके अतिरिक्त, जैसा कि गुरु ग्रंथ द्वारा परिकल्पना की गई है कि अनुग्रह एक व्यक्ति को जागृत कर देता है, बाइबल यह कहती है कि, “जिन्होंने उसकी ओर दृष्टि की, उन्होंने ज्योति पाई; और उनका मुँह कभी काला न होने पाया” (बाइबल, भजन संहिता 34:5)। बाइबल इसे और भी स्पष्ट करती है कि, “…जीवन का सोता तेरे ही पास है; तेरे प्रकाश के द्वारा हम प्रकाश पाएँगे” (बाइबल, भजन संहिता 36:9)। बाइबल इसके आगे कहती है कि, “तब तू इसे देखेगी और तेरा मुख चमकेगा, तेरा हृदय थरथराएगा और आनन्द से भर जाएगा” (बाइबल, यशायाह 60:5)। इस तरह, एक सिख स्पष्ट रूप से गुरु ग्रंथ में अनुग्रह के विषय में दी हुई तीसरी कसौटी को स्पष्टता से देख सकता है।
इतना देखने के बाद, यह हमें और अधिक स्पष्ट रूप से देखने में मदद करता है कि परमेश्वर के साथ मेल के लिए अनुग्रह कैसे एक माध्यम है। बाइबल कहती है कि सतगुरु यीशु मसीह में एक व्यक्ति को पूर्ण रूप से अनुग्रह और सच्चाई से भरी हुई मिलती है। वह अनुग्रह और सच्चाई का ही देहधारण था। इसलिए बाइबल कहती है कि, “क्योंकि पिता की प्रसन्नता इसी में है कि उसमें सारी परिपूर्णता (ईश्वरत्व) वास करे” (बाइबल, कुलुस्सियों 1:19)। इसलिए, बाइबल और अधिक कहती है कि, “क्योंकि उसकी परिपूर्णता (ईश्वरत्व) में से हम सब ने प्राप्त किया अर्थात् अनुग्रह पर अनुग्रह” (बाइबल, यूहन्ना 1:16)। इसलिए ही, जब एक भक्त को अनुग्रह को प्राप्त होता है, तो वह इसे केवल एक ही बार प्राप्त नहीं करता है, परन्तु वह इसे निरन्तर प्राप्त करता रहता है, वह भी मुफ्त में जैसा कि हमने पहले ही ऊपर देख लिया है।
इसके साथ ही, गुरु ग्रंथ आगे कहता है कि एक भक्त जो परम दयालु और तरस खाने वाले परमेश्वर से इस अनुग्रह को प्राप्त करता है, तो वह उसकी दुल्हन बन जाता है। यह गुरु ग्रंथ की दृष्टि में भविष्यद्वाणी के शब्दों के रूप में सत्य है। प्रेमी (दुल्हा) और प्रियत्तम (दुल्हन) के प्रेम-के-खेल में लंबे अलगाव के बाद, दोनों की मुलाकात को सदैव चरमोत्कर्षी माना जाता है। बाइबल स्पष्ट रूप से कहती है कि, इस प्रेम-के-खेल के अंत में परम दयालु और तरस खाने वाले परमेश्वर ने ऐसा कहा है कि, “इधर आ, मैं तुझे दुल्हिन अर्थात् पत्नी को दिखाऊँगा” (बाइबल, प्रकाशितवाक्य 21:9)।
इस प्रकार, एक व्यक्ति यह निष्कर्ष निकाल सकता है कि, गुरु ग्रंथ द्वारा जो कुछ भी चिंतन किया गया है, वह पहले से ही पूरी तरह से सतगुरु यीशु मसीह में पूरा हो चुका है। इसलिए, एक भक्त के जीवन में सतगुरु के रूप में होने के नाते, वह उस व्यक्ति को पुर्नजन्म के चक्र अर्थात् संसार चक्र से मुक्त करने का कारण बना जाता है। इसलिए, गुरु नानक के शब्दों को उद्धृत करना यहां अधिक उपयुक्त है, जब उन्होंने ऐसा कहा कि: “सुनो, हमारी सलाह सुनो, हे मेरे मन, यह सही कर्म है, जो बना रहेगा; और इसके लिए एक और दूसरा अवसर शायद न मिले” (गुरु ग्रंथ, पन्ना. 154)।[ix] और इस निष्कर्षानुसार सही कर्म यही है कि एक व्यक्ति यीशु को अपना सतगुरू अपना ले, क्योंकि हो सकता है कि फिर दुबारा यह अवसर न मिले।
[i] ਭਾਵੈ ਦੇਇ ਨ ਦੇਈ ਸੋਇ ॥
[ii] ਤਿਸੁ ਰੂਪੁ ਨ ਰੇਖ ਅਨਾਹਦੁ ਵਾਜੈ ਸਬਦੁ ਨਿਰੰਜਨਿ ਕੀਆ ॥੧॥
[iii] ਜਾ ਕੋਓ ਕਿਰਪਾ ਕਰਹੂ ਪ੍ਰਭ ਤਦ ਕੋਓ ਲਾਵਹੂ ਸੇਵ ॥
[iv] ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਹਰਿ ਪਾਈਐ ਮਤੁ ਕੋ ਭਰਮਿ ਭੁਲਾਹਿ ॥
[v] ਭਨਤਿ ਨਾਨਕੁ ਸਭਨਾ ਕਾ ਪਿਰੁ ਏਕੋ ਸੋਇ ॥ ਜਿਸ ਨੋ ਨਦਰਿ ਕਰੇ ਸਾ ਸੋਹਾਗਣਿ ਹੋਇ ॥੪॥੧੦॥
[vi] ਨਾਨਕ ਨਦਰੀ ਨਦਰਿ ਨਿਹਾਲ ॥੩੮॥
[vii] ਕਰਮੀ ਆਵੈ ਕਪੜਾ ਨਦਰੀ ਮੋਖੁ ਦੁਆਰੁ ॥
[viii] ਨਦਰੀ ਸਤਗੁਰੁ ਸੇਵੀਐ ਨਦਰੀ ਸੇਵਾ ਹੋਇ ॥ ਨਦਰੀ ਇਹੁ ਮਨੁ ਵਸਿ ਆਵੈ ਨਦਰੀ ਮਨੁ ਨਿਰਮਲੁ ਹੋਇ ॥੧॥
[ix] ਸੁਣਿ ਸੁਣਿ ਸਿਖ ਹਮਾਰੀ ॥ ਸੁਕ੍ਰਿਤੁ ਕੀਤਾ ਰਹਸੀ ਮੇਰੇ ਜੀਅੜੇ ਬਹੁੜਿ ਨ ਆਵੈ ਵਾਰੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥